मनुष्य परलोक के साथ-साथ लोक को भी सुधारें : मुनि पीयूष
करनाल, आशुतोष गौतम ( 3 जून ) उपप्रवर्तक श्री पीयूष मुनि जी ने श्री आत्म मनोहर जैन आराधना मन्दिर से अपने दैनिक सन्देश में कहा कि अपने बाहरी रूप से व्यक्ति लोक को बनाता है और आंतरिक रूप से परलोक का निर्माण करता है। अपनी आंतरिक विशेषताओं के द्वारा वह मानव जीवन को सार्थक करता है और जन्म-मरण के चक्कर से छूटकर मोक्ष को प्राप्त करता है। बाहरी गुणों के द्वारा वह लोक व्यवहार में सफलता प्राप्त कर जनप्रिय बनता है। मनुष्य को परलोक सुधारने का प्रयत्न करना आवश्यक है परन्तु साथ ही इस लोक का सुधार करना भी जरूरी होता है। मनुष्य अपने आप में कितना भी साधन संपन्न और परिपूर्ण क्यों न हो परंतु उसे लोक तथा परलोक सुधारने का प्रयत्न करना पड़ता है। अपने सद्गुणों तथा सदाचरण से मानव लोकप्रिय बनता है। लोकप्रिय बनने के लिए उसे कदम-कदम पर सावधानी रखनी पड़ती है। अपने व्यवहार को सुन्दर और आचरण को जनसाधारण की भलाई से युक्त बनाना पड़ता है। जिस प्रकार आध्यात्मिक जीवन की सफलता मोक्ष पाने में है, इसी प्रकार भौतिक जीवन की सफलता लोकप्रियता हासिल करने में है। मनुष्य को अपना व्यवहार इतना सुन्दर और व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली बनाना चाहिए कि अन्य व्यक्ति उसके सम्पर्क में आने के इच्छुक रहें और उसे अपना हितचिन्तक मानें। स्वार्थी तथा कपटी व्यक्तियों की संगति किसी को भी अच्छी नहीं लगती। दुर्जन व्यक्ति के द्वारा किसी का भला नहीं हो सकता। दुष्ट का स्वभाव ही दूसरों को सुख पहुंचाने के स्थान पर दुख तथा कष्ट देने का होता है। मुनि जी ने कहा कि दुष्ट व्यक्ति चाहे कितना भी विद्वान और वैभव सम्पन्न हो किंतु उसका संग हानिकारक होता है। वह न तो अपना भला कर सकता है और न ही दूसरों का। अपनी कुप्रवृत्तियों के कारण वह स्वयं भी दुख उठाता है तथा उसके सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति भी तकलीफ उठाते हैं। जंगल में बांस का पेड़ उग जाने पर वह दूसरे पेड़ों के लिए भय उत्पन्न कर देता है। कभी आपस में रगड़ खाकर वह आग लगा देता है। फलस्वरुप वह स्वयं तो जलता है तथा दूसरों को भी जलाकर भस्म कर देता है। कभी पूरे के पूरे जंगल ही जल जाते हैं किन्तु जब वन में चंदन का पेड़ उगता है तो सारा जंगल हर्षित हो जाता है। सारी वनस्पति सोचती है कि इसकी खुशबू हमें भी महका देगी, हमारा भी मोल बढ़ जाएगा तथा लोग हमें चंदन समझने लग जाएंगे। दुर्जन व्यक्ति बांस की तरह जहां भी होते हैं वहां के निवासियो का अहित करते हैं तथा सज्जन सबका भला करते हुए आसपास के वातावरण को भी प्रसन्नतापूर्वक बना देते हैं। सज्जन ही जनप्रिय होता है। प्रत्येक व्यक्ति उससे सम्पर्क का इच्छुक होता है और उससे सम्पर्क करके प्रमोद को प्राप्त करता है। उसके द्वारा कभी किसी का अहित नहीं होता। यहां तक कि वह अपना अपकार करने वाले का भी उपकार करता है। निर्मल तथा उदार व्यक्ति सारे संसार को प्यारे लगते हैं तथा चन्दन की तरह उनकी महक सब ओर फैल जाती है उनके सम्पर्क में आने वाला महान पापी भी साधु पुरुष बन जाता है तथा मानव सच्ची मानवता को प्राप्त करता है। जिस प्रकार दीपक स्वयं जलकर भी दूसरों को प्रकाश देता है उसी प्रकार साधु स्वयं तकलीफ उठा कर दूसरों को सुखी करने की कोशिश करता है। जो व्यक्ति सभी का प्रिय बनना चाहता है उसमें अनेक गुण होने चाहिएं। अपने सद्गुणो से व्यक्ति लोकप्रिय बनता है। ऊंचे आसन पर बैठने से, उच्च कुल में जन्म लेने तथा ऊंचे-ऊंचे गगनचुम्बी महलों में रहने से व्यक्ति किसी का आदर, स्नेह तथा सम्मान नहीं पा सकता। अपने गुणों से व्यक्ति महान बनता है, ऊंचे आसन पर बैठने से नहीं, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार महल के शिखर पर बैठने से कौव्वा गरुड़ नहीं बन सकता।