सत्संग कल्पवृक्ष के समान हितकारी है – मुनि पीयूष
करनाल, आशुतोष गौतम। उपप्रवर्तक श्री पीयूष मुनि जी महाराज ने श्री आत्म मनोहर जैन आराधना मंदिर करनाल से अपने दैनिक संदेश में कहा कि संगति कोई भी हो, वह मन पर अपना प्रभाव अवश्य डालती है। यदि बुरी संगति करने से व्यक्ति बुरा बनता है तो अच्छी संगति करने से व्यक्ति अच्छा भी अवश्य बनता है। सत्संग के द्वारा व्यक्ति धर्म के स्वरूप को समझ कर ज्ञानी बन जाता है और सुख-दुख में समभावी बन कर रहने का अभ्यासी हो जाता है। सत्संग के महत्त्व को न समझने वाले व्यक्ति कहते है कि कोरा सत्संग करने से कुछ भी लाभ नहीं होता। वास्तव मेंजो व्यक्ति सज्जन दिखाई देते हैं उनकी सज्जनता किसी जन्म में किए सत्संग का परिणाम है। जो व्यक्ति बुरे हैं, बुरा सोचते, बोलते तथा करते हैं, यह उनके जीवन में सत्संग की कमी का फल है। सत्संग की निन्दा करना इसके सुमधुर फलों से स्वयं को वंचित करना है। सत्संग कल्पवृक्ष के समान है जिसके नीचे बैठने से व्यक्ति को सब कुछ मिलता है। महापुरुषों की कृपा तथा आशीर्वाद से उसका जीवन-आंचल सदैव भरा रहता है। ज्ञान नेत्रों के आने से अज्ञान की धुंध छटने लगती है, सत्य का साक्षात्कार होने लगता है, किए हुए कर्मों से पश्चात्ताप होने पर मन स्फटिक रत्न की तरह निर्मल बनता है। लोगों की दृष्टि में वह विश्वासपात्र बन जाता है और परोपकार, सेवा के कार्यों में उसकी रुचि बढ़ती है। मोह तथा ममता के बन्धन शिथिल होकर टूटने लगते हैं तथा जीवन में समता योग की प्रतिष्ठा होने लगती है। मुनि जी ने कहा कि धर्मसंघ महापुरुषों के उपदेशों से अस्तित्व में आता है। महापुरुषों की वाणी सुनकर कोई विरक्त होकर मुनि बन जाता है तो कोई गृहस्थ। इस तरह धर्मतीर्थ उदय में आता है। यदि कोई अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहता है तो उसे अच्छे लोगों की संगति मे रहना चाहिए क्योंकि बुरे लोगों की संगति में रहने की अपेक्षा अकेले रहना अधिक अच्छा है। फलों की टोकरी में रखा एक भी फल यदि गला-सड़ा हो तो सारे फलों को खराब कर देता है। इसी तरह बुरा व्यक्ति अपने सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों की मनोभावनाओ को बिगाड़ देता है। उच्च कोटि के लोगों के सम्पर्क में आकर साधारण लोग भी महान बन जाते हैं। जैसे फूलों की माला में धागा भी फूलों की संगति में आकर भगवान के कण्ठ में शोभायमान हो जाता है। जैसे लोहे के संपर्क में आकर अग्नि हथौड़े की चोटे खाती है, इसी प्रकार अधम लोगों की संगति से महान व्यक्ति भी अनेक प्रकार की तकलीफें उठाते हैं। इस प्रकार नीच लोगों की संगति की हानियों को समझकर उनसे बचा जाए क्योंकि इसी में व्यक्ति का ही हित, भला और कल्याण है।