सम्प्रदाय अलग-अलग, परन्तु धर्म एक है – मुनि पीयूष
करनाल, आशुतोष गौतम। उपप्रवर्तक श्री पीयूष मुनि जी महाराज ने श्री आत्म मनोहर जैन आराधना मन्दिर से अपने दैनिक सन्देश में कहा कि धर्म से शुद्धि होती है। धर्म कर्म को नष्ट करता है। धर्म ही मुक्ति देता है। जिसे धारण किया जाता है, वही धर्म है। कलियुग में लोगों को धर्म पर विश्वास कम होता है परन्तु धर्म ही धरती को धारण करता है। धर्म का कभी भी नाश नहीं होता। धर्म की साधना करके ही मानव भगवान बन सकता है। लोग धर्म के मौलिक स्वरूप को नहीं जानते, परन्तु साम्प्रदायिक जुनून में मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। धर्म लड़ना नहीं सिखाता, वह तो लड़ाई-झगड़े को रोककर शांति की स्थापना करता है। धर्म बनाया नहीं जाता। वह आत्मा का निज स्वभाव है। मुनि जी ने कहा कि धर्म अनादि है। सम्प्रदाय अलग-अलग हो सकते हैं परन्तु धर्म तो एक ही है। सम्प्रदाय को धारण करने मात्र से व्यक्ति धार्मिक नहीं बन सकता। सम्प्रदाय तो लोग जन्म से ही ग्रहण कर लेते हैं। सम्प्रदाय और धर्म एक नहीं, आपितु अलग-अलग हैं। आत्मा का स्वभाव ही आत्मा का धर्म है। ज्ञान, सत्य तथा शान्ति आत्मा का स्वभाव है। दोषों को जीवन से निकालने से ही जीवन में धर्म की प्रतिष्ठा हो सकती है। जैन, बौद्ध, सनातन, आर्य समाजी, मुस्लिम, ईसाई, यहूदी स्वयं को कहने मात्र से व्यक्ति धार्मिक नहीं हो सकता। धर्म के वास्तविक स्वरूप को जानकर तथा कर्म में धर्म का समन्वय करके ही व्यक्ति धार्मिक बन सकता है। धार्मिक व्यक्ति किसी भी धर्म की आलोचना नहीं करता। दूसरे धर्मों की बुराई-निन्दा करने वाला तो धर्म के नाम पर पाप ही करता है।