बुद्धि को पुरुषार्थ के द्वारा न निखारने पर वह कुंठित हो जाती है : मुनि पीयूष
करनाल, आशुतोष गौतम ( 17 जून ) उपप्रवर्तक श्री पीयूष मुनि जी महाराज ने श्री आत्म मनोहर जैन आराधना मन्दिर से अपने दैनिक सन्देश में कहा कि बुद्धि एक दैवी वरदान है। अनेक व्यक्ति बुद्धिमान होते हैं परन्तु यदि वे कार्यसिद्धि के लिए पराक्रम का प्रयोग न करें तो उनकी बुद्धि निष्फल चली जाती है। बुद्धि को पुरुषार्थ के द्वारा न निखारने पर वह कुंठित हो जाती है। बुद्धि के साथ उत्साह और पराक्रम होने पर ही उसमें चार चांद लग सकते हैं। पराक्रम अमरता का मार्ग है। पराक्रमी कभी मरता नहीं किन्तु कायर जीवित रहकर भी मृतक के समान ही बना रहता है। कायर बार-बार काम शुरू करके भी उसे पूरा नहीं कर पाता। अपने सत्य पर दृढ़तापूर्वक डटे रहना चाहिए चाहे अपने जीवन की आहुति भी क्यों न देनी पड़े। मनुष्य को अंगारें की तरह तेजस्वी एवं प्रकाशमय बनना चाहिए। जीवन की लंबाई का कोई महत्त्व नहीं है। जितने समय तक जीवित रहा जाए, पराक्रम और तेजस्वितापूर्वक जीना चाहिए। पराक्रम जीवन है और कायरता मृत्यु। मुनि जी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को कष्ट सहन करते हुए पराक्रम के साथ जीवन जीना चाहिए क्योंकि संसार में कायर के लिए कोई स्थान नहीं है। मनुष्य को मुक्ति और सिद्धि पराक्रम के बिना नहीं मिलती। पराक्रमपूर्वक विकारों को परास्त करने तथा मन-इन्द्रियों पर विजय पाने वाला मानव शरीर का निमित्त पाकर तृप्ति के अपूर्व आनन्द का अनुभव करता है और परलोक में परमानन्द पाता है। पुरुषार्थहीन व्यक्ति मन तथा इन्द्रियों का गुलाम बनकर जन्म-जन्मांतरों में भवभ्रमण से नहीं छूट सकता। वह अनन्त बार जन्म लेता है और मरता है। भविष्य का निर्माण तथा जीवन को उन्नत बनाने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को पराक्रमपूर्वक उसके सृजन में जुटे रहना चाहिए। जीवन का उद्देश्य ऊंची स्थिति का निर्माण करना होता है। भय हमेशा उन्नति में बाधक होता है। आत्मा में अनन्त शक्ति है, केवल उसे समझने और पहचानने की जरूरत है। व्यक्ति को आज जो कुछ मिला है उसकी नींव पर अपने जीवन को ऊंचा बनाने की कोशिश करनी चाहिए। कोई कारण नहीं है कि व्यक्ति अपने प्रयत्न में असफल होवे। समय का प्रवाह लगातार चलता रहता है। जो क्षण भर के लिए भी नहीं रुकता लाख प्रयत्न करने पर भी मुड़ता नहीं। कार्य का शुभारम्भ करने के लिए प्रत्येक पल शुभ मुहूर्त्त है। काल सैकड़ो प्रतिभाशाली व्यक्तियों को हजम कर चुका है। इसलिए इसका तिरस्कार करते हुए स्वयं को समर्थ तथा कर्मठ बनाकर दृढ़तापूर्वक जीवन को ऊंचाई के शिखर की ओर ले जाना चाहिए। आत्मा सारी शक्तियों का निधान है जिसका उपयोग करके ही उन्नति के रास्ते पर बढ़ना सम्भव है।