समय को गलत तरीके से गंवाने वाले पथभ्रष्ट हो कर इधर-उधर ठोकरें खाते हैं – मुनि पीयूष
करनाल, आशुतोष गौतम। उपप्रवर्तक श्री पीयूष मुनि जी महाराज ने श्री आत्म मनोहर जैन आराधना मंदिर करनाल से अपने दैनिक संदेश में कहा कि नश्वर शरीर से जितनी प्रगति हो सके, जरूर की जाए। प्रमाद के कारण कभी भी अपने प्रयत्नों को रोका नहीं जाए। अच्छी आदतें व्यक्ति को जीवन पथ के लक्ष्य तक पहुंचाती है। समय को गलत तरीके से गंवाने वाले पथभ्रष्ट हो कर इधर-उधर ठोकरें खाते हैं। मनुष्य को प्रगति करते हुए आगे बढऩा चाहिए तथा कहीं भी प्रमादवश रुकना नहीं चाहिए। चलने का मतलब केवल ठहरना, सैर-सपाटे करना अथवा आंखें मूंदकर दौडऩा नहीं है। भटकने वाले लकीर के फकीर को प्रगतिशील नहीं कहा जा सकता। मनुष्य चरण में कम पर आचरण में अधिक आगे बढ़ता है। वह देह से कम किन्तु विचारों से अधिक चलता है। चलने का तात्पर्य है – उन्नति करना, सतत उद्योग करना तथा अपनी शक्तियों का सदुपयोग करते हुए अभ्यासमय जीवन बिताना। आत्मा को उन्नत करना जीवन की सच्ची प्रगति है। चुपचाप बैठे रहने से कुछ नहीं मिलता। जैसा प्रयत्न किया जाता है, वैसी ही सफलता मिलती है। लगातार मेहनत करने में ही जीवन की सफलता छिपी हुई है। निष्क्रियता मनुष्य की मृत्यु है। मेहनत न करने वाले को जीता-जागता मुर्दा समझना चाहिए जिसका जीवन व्यर्थ चला जाता है। कर्म बुद्धि, हृदय से करते हुए शारीरिक अंगों से भी सहयोग लेना चाहिए। बिना प्रयोजन तथा लक्ष्य के फिजूल की क्रियाएं करने से कुछ भी फायदा नहीं होता। विवेकपूर्वक सूझ-बूझ के साथ किए जाने वाले कर्म जीवन सर्वांगीण का विकास करते हैं।