यश का काम न करने वाले मरे हुए के समान हैं : मुनि पीयूष
करनाल, आशुतोष गौतम ( 26 जून ) उपप्रवर्तक श्री पीयूष मुनि जी महाराज ने श्री आत्म मनोहर जैन आराधना मंदिर से अपने दैनिक संदेश में कहा कि संसार में कुछ लोग जाति, कुल तथा ऐश्वर्य से हीन स्तिथि के होकर भी अपने उत्तम गुणों से प्रसिद्ध प्राप्त करते हैं तथा मानव जीवन को सार्थक करते हैं। विधाता जाति और कुल के आधार पर मनुष्यों के भाग्य का निर्माण नहीं करता। अच्छे और बुरे कर्मों के आधार पर ही भविष्य की गति का निर्धारण होता है। मनुष्य चाहे कितना भी धनवान, रूपवान और कुलवान क्यों न हो पर अगर उसमें उत्तम गुण नहीं हैं, वह उत्तम कर्म नहीं करता तो उसका धन, रूप और कुल उसके श्रेयस के साधन नहीं बन सकते। जिन्होंने यश पाने का कोई काम नहीं किया, वे मरे हुए हैं। जिन्होंने शास्त्र का ज्ञान प्राप्त नहीं किया, वे अन्धे हैं। जो दानशील नहीं हैं वे नपुंसक हैं तथा जो कर्मशील नहीं हैं वे शोचनीय हैं। शुभ कर्म करने के लिए उच्च जाति अथवा कुल का होना आवश्यक नहीं है। जाति से कोई पतित नहीं होता। पतित वह होता है जो जीवहत्या, भ्रूणहत्या, मदिरापान, चोरी, ठगी, बेईमानी आदि दुष्कर्म करता है और उनको गुप्त रखने के लिए बार-बार झूठ बोलता है। वास्तव में अच्छे कार्य करने वाला व्यक्ति निम्न जाति का होने पर भी महान, पूजनीय और सुगति का अधिकारी होता है। उसे ही भगवान का सच्चा भक्त माना जा सकता है। मुनि जी ने कहा कि धर्म का जाति तथा कुल से कोई संबंध नहीं होता। सच्चा धर्म शुद्ध हृदय में पाया जाता है। धर्म अन्तरात्मा में पनपता और विकसित होता है। सच्चे धर्म का आधार उदारता, दयालुता, विश्वस्तता तथा मानवता की भावनाएं ही हैं। धर्म संसार के प्रत्येक जीव पर करुणा करना सिखाता है। चाहे वह अमीर हो-गरीब हो, अछूत हो या मानव न होकर कुत्ता, बिल्ली या अन्य पशु-पक्षी ही क्यों न हो। मनुष्य के हृदय में अन्य प्राणियों के प्रति गहरी सहानुभूति होनी चाहिए।